भूविज्ञान

भूमिगत जल की संभावना वाले मानचित्र

पेयजल प्रौद्योगिकी मिशन भारत के तत्कालीन प्रधान मंत्री (1986) द्वारा शुरू किए गए पाँच प्रौद्योगिकी मिशनों में से एक है। इस पहल के तहत एनआरएससी ने कार्यप्रणाली विकसित की है और पूरे देश के लिए 1: 50,000 पैमाने पर भूमिगत जल की संभावना वाले मानचित्र तैयार किये हैं, जिसे भुवन भूजल इसरो के भूपोर्टल के माध्यम से सार्वजनिक उपयोग के लिए रखा गया है।ये मानचित्र भूमिगत जल की उपलब्धता और गहराई की जानकारी, संभावित अन्वेषण क्षेत्रों, संरक्षण उपायों, समग्रता में स्थिरता का प्रतिनिधित्व करते हैं।

भूजल की गुणवत्ता का मानचित्रण एनआरएससी द्वारा चलाई जा रही एक अन्य महत्वपूर्ण गतिविधि है, जिसे भू-रासायनिक संदूषक के मौसमी गुणवत्ता डेटा को व्यवस्थित करके, राज्य विभागों द्वारा कुओं से एकत्र किया जाता है। भूमिगत जल की संभावना वाले मानचित्र के साथ अभिकल्पना के लिए जीआईएस पर्यावरण में बिन्दु आंकड़ों को इन्टरपोलेटेड किया जाता है, जो पीने के लिए प्रयुक्त अप्रयुक्त पानी के भूमिगत जल के स्त्रोतों को अलग करता है।

जीपीआर एवं आरएस तकनीकों के आधार पर तटीय जलभृतों में लवणीय पानी के अतिक्रमण एवं भूमिगत जल की प्रणाली पर इसके प्रभाव का अध्ययन किया जा रहा है।
राष्ट्रीय जलभृत मानचित्रण एवं प्रबंधन (एनएक्यूयूआईएम) परियोजना के अंतर्गत भूमिगत जल का बंटवारा, ड्राफ्ट आकलन एवं मॉडल तैयार करने का अध्ययन सुदूर संवेदन इनपुट के साथ समायोजित कर किया जाता है।