मृदा

भू-निम्नीकरण मानचित्रण: 1:50,000 पैमाना

सीमित जमीनी सत्यता और मृदा रासायनिक विश्लेषण के साथ 2005-06 (खरीफ (अगस्त-नवंबर), रबी (जनवरी- मार्च), जायद (अप्रैल-मई) मौसम) के आईआरएस लिस-III उपग्रह आंकड़ों (डेटा) के दृश्य निर्वचन द्वारा पूरे देश के लिए 1: 50,000 पैमाने पर भू-निम्नीकरण मानचित्रण का प्रथम चक्र किया गया था। भू- निम्नीकरण मानचित्रों को 36 वर्गों (भू- निम्नीकरण प्रक्रिया, प्रकार और गंभीरता पर विचार करते हुए तीन स्तरीय वर्गीकरण) में उप-वर्गीकृत किए गए 8 भू- निम्नीकरण प्रक्रियाओं को दर्शाते हुए तैयार किए गया था। 2005-06 के मृदा अपरदन (जल एवं वायु), लवण प्रभावित और जल जमाव क्षेत्र के मानचित्र भुवन पर होस्ट किए गए। भारत में 91 मिलियन हेक्टेयर का क्षेत्रफल भू-निम्नीकरण (27.7% टीजीए) के अंतर्गत अनुमानित है। भू-निम्नीकरण का लगभग 80% जल अपरदन के कारण होता है, इसके बाद वायु अपरदन, लवणता और जलभराव के कारण होता है।

अपरदन मानचित्र (2005-06) व लवण प्रभावित एवं जल भराव को भुवन पर होस्ट किया गया है।

 

2016-17 के दौरान अभिग्रहीत बहुकालिक रिसोर्ससैट लिस-III उपग्रह आंकड़ों (डेटा) के साथ भू-निम्नीकरण मानचित्रण का दूसरा चक्र जारी है जिसके द्वारा पिछले 10 वर्षों के दौरान देश में भू- निम्नीकरण परिवर्तनों की निगरानी की जायेगी। मोबाइल एप्लिकेशन के माध्यम से जमीनी हकीकत एकत्रित की जा रही है जो भुवन पर अभिकल्पना को सक्षम बना सकेगी।

जल संभरों के शोधन के लिए प्राथमिकता निर्धारण, जिला स्तर पर मृदा संरक्षण व उद्धार कार्यक्रम के नियोजन, उद्धार प्रयासों की निगरानी, पर्यावरणीय व जलवायु परिवर्तन अध्ययन, भू-निम्नीकरण तटस्थता के लिए कार्य योजना मानचित्र तैयार करना, तीव्र परिवर्तन क्षेत्रों की पहचान को सुगम बनाने (हॉट स्पॉट) के लिए भू-निम्नीकरण मानचित्रों का उपयोग किया जाएगा।