जल संसाधन

हिम आवरण मानचित्रण और मानीटरन

हिमालय की बर्फ भारत के लिए महत्वपूर्ण जल संसाधन है और यही बर्फ अधिकतर गर्मी के महीनों के दौरान पिघलकर नदी प्रणालियों जैसे सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र के रूप में जल संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा बनाती है। सुदूर संवेदन आंकड़ों (डेटा) का उपयोग करके हिम आवरण का नियमित रूप से मानचित्रण किया जाता है। अपेक्षाकृत अत्यधिक श्वेतिमा (ऐल्बिडो) युक्त हिम आवरण, मानक मिथ्यावर्ण संयुक्त (एफ.सी.सी.) प्रतिबिम्बों पर बहुत उज्ज्वल दिखाई देता है और इसे अन्य भूमि आवरण लक्षणों के साथ आसानी से पहचान लिया जाता है।

जलाशय के संचालन की योजना बनाने के लिए विशेषतः गर्मी के महीनों में बर्फ़ पिघलने की मात्रा की उपलब्धता की पूर्व सूचना आवश्यक है। सुदूर संवेदन सूचना निवेश (इनपुट) का उपयोग करते हुए हिमगलन अपवाह मॉडल, मौसमी (3 महीने का) एवं अल्पावधि (16 दिन का) दोनों, का विकास किया गया है जिसका उपयोग गर्मी के महीने (अप्रैल-मई-जून) के दौरान 5 नदी बेसिन (चेनाब, ब्यास, सतलुज, यमुना और गंगा) के पूर्वानुमान के लिए किया जाता है। वर्ष 2012 से 2016 के दौरान अप्रैल से जून महीनों के लिए मौसमी पूर्वानुमान 1 अप्रैल तक प्रदान किया गया। प्रत्येक वर्ष अप्रैल, मई और जून महीनों के दौरान प्रत्येक 16-दिन की अवधि का छह अल्पकालिक पूर्वानुमान समय पर प्रदान किए गया।

कुल विकिरण की संगणना के लिए क्षेत्र आंकड़ों (फील्ड डेटा) के साथ उपग्रह व्युत्पन्न सूचना निवेश (इनपुट) जैसे बर्फ आवरण, बर्फ श्वेतिमा, बर्फ सतह तापमान, बर्फ उत्सर्जिता (इमिसिटी) का उपयोग किया जाता है। कुल विकिरण स्थानिक वितरण उपगमन में ऊर्जा संतुलन विधि का उपयोग करते हुए बर्फ पिघलन अपवाह केआकलन में आधार का काम करता है। बेसिन वार मॉडल और आवश्यक आंकड़ों (डेटा) को प्रशिक्षण सहायता के साथ सी.डब्ल्यू.सी. को आंतरिककरण और उपयोग के लिए स्थानांतरित किया गया।